भगवान् ने सब कुछ सोच के बनाया है
August 20, 2018
भगवान् ने सब कुछ सोच के बनाया है,एक स्रष्टि,दो स्वरुप ,तीन देव , चार आश्रम ,पञ्च तत्व,छ :संवेदनाये , सात रंग ,आठ पहर ,नौ ग्रह, दस दिशाएँ , ग्यारह आकर ,बारह भाव एवं राशियाँ ,सत्ताईस नक्षत्र,छप्पन भोग , चौरासी कलाएं ,एक सौ आठ नाम …….आदि आदि,इत्यादि . हर एक वस्तु को एक संख्या प्रदान की गई है .
अथार्थ सब को एक सीमा में सीमित कर दिया गया है ,चाहें वो दिशा हो ,दशा हो,भोग हों या योग हो .परन्तु एक मानव के मन को अनंत कल्पनाओं से सुशोभित किया है तथा किसी भी परिधि से दूर रखा है . मन को कोई नहीं बाँध सकता सिवाय मन के. कहने का तात्पर्य है कि मन की औषधि सिर्फ मन है .मन का कारक चंद्रमा होता है और चन्द्रमा की गतिशीलता सभी ग्रहों से ज़्यादा होती है . चंद्रमा सवा दो दिन में भाव के फेरे लगा लेता है . चंद्रमा का उपाय सिर्फ चन्द्रमा ही है . जैसे माता के स्नेह का विकल्प फ़क़त माता का स्नेह ही है .वैसे ही चंद्रमा का विकल्प सिर्फ चंद्रमा है.
विश्व एक है .इसके दो रूप हैं. एक प्रत्यक्ष और दूसरा अप्रत्यक्ष . या इसको इस तरह से कहें कि भगवान् ने एक प्रकृति को बनाया और इसको रात एवं दिन में बाँट दिया और तीन देवता ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश इसकी रक्षा करते हैं .
जीवन के बाल्यपन ,किशोर ,युवा,वृद्ध चार आयाम हैं .ब्रह्मचर्य, गृहस्थ ,वानप्रस्थ ,संन्यास ये चार आश्रम हैं .
इस प्रकृति में हर सजीव चीज़ पांच तत्व अग्नि ,पृथ्वी ,वायु ,जल ,आकाश से मिलकर बनी है तथा छ: संवेदनाएं हैं .विज्ञानं में, अध्यात्म में ,संसार में प्रकृति में सात रंग हैं , समय के आठ पहर हैं और खगोल को सँभालते हुए नौ गृह हैं . जीवन को दिशा देतीं हुई दस दिशाएँ हैं .जीवन की ग्यारह आकृति हैं. ग्रहों को बारह राशियों में समेटे बारह भाव हैं जो किसी भी परस्थिति का परिवर्तन दिखाती हैं . जैमनी दशा अधिकतम बारह वर्ष की होती है इसलिए कहा जाता है कि बारह साल में किसी घूरे के भी दिन बदल जाते हैं.
आकाश में कई हज़ार आकाशगंगा हैं जो अनवरत रूप से अन्तरिक्ष में घूमती हैं जो कभी कभी आपस में टकराकर एक धूमकेतु के रूप में दिखाई देती हैं. एक राशी में सवा दो नक्षत्र होते हैं और कुल सत्ताईस होते हैं . जो वैदिक ज्योतिष का सार है या कहें कि ककहरा का अभिन्न अंग है.भगवान ने भोजन के व्यंजन की संख्या भी चप्पन तक सीमित कर दी .किसी भी नाम के १०८ पर्यायवाची हो सकते हैं……… आदि आदि ….इत्यादि
हर चीज़ एक संख्या से जुडी है और हर संख्या एक चीज़ से सम्बंधित है. सबकी अपनी परिधि निश्चित है .अपना अपना दायरा है और इस दायरे के बाहर कोई नहीं आ सकता सिवाय मन के या किसी सिध्द पुरुष के @ दीपक शर्मा